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परोपकार, जन सेवा, ज्ञान एवं कर्म के सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए महान समाज सुधारक दयानंद सरस्वती जी ने गुड़ी पड़वा के दिन 1875 में आर्य समाज की स्थापना की। वहीं स्वामी जी का यह कल्याणकारी ऐतिहासिक कदम मील का पत्थर साबित हुआ।

आपको बता दें कि इसका उद्देश्य मानसिक, शारीरिक और सामाजिक उन्नति करना था। ऐसे विचारों के साथ स्वामी जी ने आर्य समाज की नींव रखी जिससे कई महान विद्धान प्रेरित हुए, तो दूसरी तरफ स्वामी जी के आलोचक भी कम नहीं थे, कई लोगों ने इसका विरोध भी किया लेकिन दयानंद सरस्वती जी के तार्किक ज्ञान के आगे वे टिक नहीं सके और बड़े-बड़े विद्दानों और पंडितों को भी स्वामी जी के आगे सिर झुकाना पड़ा।

इसके अलावा उन्होंने विद्धानों को वेदों की महत्वता के बारे में समझाया। दयानंद सरस्वती ने धर्म परिवर्तन कर चुके लोगों को दोबारा हिन्दू बनने की प्रेरणा देकर शुद्धि आंदोलन चलाया। वहीं साल 1886 में लाहौर में स्वामी दयानंद के अनुयायी लाला हंसराज ने दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज की स्थापना की थी। जिससे हिन्दू समाज में जागरूकता फैली।

जिनपर महर्षि दयानंद सरस्वती का बहोत प्रभाव पड़ा, और उनके अनुयायियों की सूचि में मॅडम कामा, पंडित लेख राम, स्वामी श्रद्धानंद, पंडित गुरु दत्त विद्यार्थी, श्याम कृष्णन वर्मा (जिन्होंने इंग्लैंड में भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों का घर निर्मित किया था), विनायक दामोदर सावरकर, लाला हरदयाल, मदन लाल धींगरा, राम प्रसाद बिस्मिल, महादेव गोविन्द, महात्मा हंसराज, लाला लाजपत राय और कई लोग शामिल थे।