समाज के कल्याण के लिए अपनी आवाज की बुलंद और पढ़ाया एकता का पाठ:

महर्षि दयानंद सरस्वती जी एक महान समाज सुधारक थे, इसलिए उन्होंने समाज में फैली बुराइयां जैसे बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा पुनर्विवाह को दूर किया और अंधविश्वास के खिलाफ अपनी आवाज उठाई और एकता का संदेश दिया। इसके साथ ही उन्होंने नारी शक्ति का भी समर्थन किया।

दयानंद सरस्वती ने किया बाल-विवाह का विरोध:

जब दयानंद सरस्वती समाज में सुधार करने का काम कर रहे थे तो उस समय समाज में बाल-विवाह का प्रथा व्याप्त थी और ज्यादातर लोग कम उम्र में ही अपने बच्चों की शादी कर देते थे, इससे न सिर्फ लड़कियों को शारीरिक कष्ट होता था बल्कि उनका शोषण भी किया जाता था।

जिसको देखकर स्वामी जी ने शास्त्रों के माध्यम से लोगों को इस प्रथा के खिलाफ जगाया और बताया कि शास्त्रज्ञान के मुताबिक मानव जीवन में प्रथम 25 साल अविवाहित रहकर ब्रह्राचर्य का पालन करना चाहिए और उनके अनुसार बाल-विवाह एक कुप्रथा है।

इसके साथ ही आपको यह भी बता दें कि स्वामी जी ने यह भी कहा था कि अगर बाल विवाह होता है तो मनुष्य का शरीर निर्बल हो जाता है औऱ निर्बलता की वजह से उसकी समय से पहले मौत हो जाती है।

स्वामी दयानंद जी ने किया सती प्रथा का विरोध:

स्वामी दयानंद जी ने समाज में फैली अमानवीय कुप्रथा (सती प्रथा ) का भी जमकर विरोध किया उस समय पति की मौत के बाद पत्नी को उसकी चिता के साथ जीवित प्राण त्यागने की अमानवीय कुप्रथा थी। जिसके खिलाफ दयानंद जी ने अपनी आवाद बुलंद की सम्पूर्ण मानव जाति को प्रेम आदर का भाव सिखाया और परोपकार का संदेश दिया।

विधवा पुनर्विवाह को लेकर लोगों को किया जागरूक:

आज भी देश के पिछड़े इलाकों में विधवा पुर्नविवाह को लेकर लोगों की सोच नहीं बदली है लेकिन उस समय तो पति की मौत के बाद विधवा स्त्रियों को समाज में कई तरह की पीड़ा सहनी पड़ती थी।

यहां तक कि उन्हें प्राथमिक सामान्य मानवीय अधिकारों से भी वंचित कर दिया जाता था जिसका स्वामी जी ने घोर विरोध किया और विधवा स्त्रियों को दी जाने वाली अमानवीय पीड़ा की घोर निंदा की और नारियों के सह सम्मान पुर्नविवाह के लिए अपने विचार लोगों के सामने रखे और इसके लिए लोगों को जागरूक भी किया।

स्वामी जी ने पढ़ाया एकता का पाठ:

स्वामी दयानंद जी ने लोगों को एकजुट होने का संदेश दिया और इसके महत्व के बारे में बताया। स्वामी सभी धर्म के लोगों को आपस में भाई-चारे के साथ मिलजुल कर रहने के लिए प्रेरित करते थे। स्वामी दयानंद का मानना था कि आपसी लड़ाई का फायदा तीसरा लेता है।

इसलिए आपस में मिलजुल कर रहने की जरूरत है। इसीलिए स्वामी दयानंद सरस्वती का यह नारा था कि, सभी धर्म के अनुयायी एक ध्वज तले के नीचे एकत्रित हो जाएं ताकि आपसी गृहयुद्ध की स्थिति से बचा जा सके।

और देश में एकता की भावना बनी रहे। इसके लिए कई सभाओं का आयोजन भी किया।

सभी वर्गों को समान अधिकार दिलाने के लिए उठाई आवाज:

स्वामी दयानंद सरस्वती जातिवाद और वर्णभेद की कुप्रथा के कट्टर विरोधी थे। उन्होंने सभी वर्गों के लोगों को समान अधिकार दिलवाने के लिए अपनी आवाज बुलंद की। स्वामी जी का मानना था कि चारों वर्ण केवल समाज को ठीक तरीके से चलाने के लिए अभिन्न हैं, जिसमें कोई भी छोटा या बड़ा नहीं है, सभी बराबर है।

महिला शिक्षा, सुरक्षा और नारी सशक्तिकरण पर दिया जोर:

स्वामी दयानंद सरस्वती ने नारी शक्ति का समर्थन किया और महिलाओं की शिक्षा और सुरक्षा को लेकर अपनी आवाज उठाई। उनका मानना था की महिलाओं को पुरुष के बराबर के अधिकार मिलने चाहिए और समाज में महिलाओ को पुरुष के समकक्ष मानना चाहिए।